शनिवार, 31 अक्टूबर 2020

मगध और उसका उत्कर्ष

मगध और उसका उत्कर्ष


मगध प्राचीन भारत के सोलह महाजनपद में से एक था ।  मगध महाजनपद दक्षिण बिहार के पटना गया जिलो पर स्थित था। अभी इस नाम से बिहार में एक प्रंमडल है - मगध प्रमंडल इसकी प्रारम्भिक राजधानी राजगीर थी जो चारो तरफ से पर्वतो से घिरी होने के कारण गिरिब्रज के नाम से जानी जाती थी। मगध की स्थापना बृहद्रथ ने की थी और ब्रहद्रथ के बाद जरासंध यहाँ का शाषक था। चौथी शती ई.पू. में मगध के शासक नव नंद थे। इनके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य तथा अशोक के राज्यकाल में मगध के प्रभावशाली राज्य की शक्ति अपने उच्चतम गौरव के शिखर पर पहुंची हुई थी और मगध की राजधानी पाटलिपुत्र भारत भर की राजनीतिक सत्ता का केंद्र बिंदु थी।


वेदों से जानकारी (प्रमाण) :

  • ऋग्वेद में कीकट (किराट) नामक प्रदेश का उल्लेख मिलता है। जहां राजा प्रमगन्द का शासन था। 
  • यजुर्वेद में भी मगध के रहने वाले भाटों जनजाति का उल्लेख मिलता है।
  • अथर्ववेद में एक प्रार्थना है उसमें कहा गया है कि यह बीमारी मगध को जाए मतलब एक श्राप जैसा बात बोला गया है।

विस्तार -

मगध महाजनपद की सीमा उत्तर में गंगा से दक्षिण में विन्ध्य पर्वत तक, पूर्व में चम्पा से पश्‍चिम में सोन नदी तक विस्तृत थीं । मगध का सर्वप्रथम उल्लेख से सूचित होता है कि विश्वस्फटिक नामक राजा ने मगध में प्रथम बार वर्णों की परंपरा प्रचलित करके आर्य सभ्यता का प्रचार किया था।वाजसेनीय संहिता में मागधों या मगध के चारणों का उल्लेख है। मगध की प्राचीन राजधानी राजगृह थी । यह पाँच पहाड़ियों से घिरा नगर था । कालान्तर में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थापित हुई । मगध राज्य में तत्कालीन शक्‍तिशाली राज्य कौशल, वत्स अवन्ति को अपने जनपद में मिला लिया

 

मौर्य शासन के उत्थान के पहले की दो सदियों में मगध साम्राज्य के विकास का दौर समकालीन ईरानी साम्राज्य के दौर के समान रहा। मगध साम्राज्य की इस महत्त्वपूर्ण सफलता के पीछे कारण थे-

मजबूत कूटनीतिक व्यवस्था - मगध में बिंबिसार, अजातशत्रु और महापदमनंद जैसे महत्त्वाकांक्षी शासकों ने लगातार इसके विस्तार से इसे मजबूत किया। मगध राज्य ने ही पहली बार अपने पड़ोसियों के विरुद्ध युद्ध में लोहे के हथियारों का प्रयोग किया, जो देश के पूर्वांचल से मगध शासकों के पास पहुँचते थे। 


मगध शासकों ने विभिन्न प्रकार की कूटनीति का प्रयोग किया जैसे वैवाहिक नीति, मित्रवत -नीति , युद्ध -नीति तथा फूट-नीति। मगध साम्राज्य में कूटनीतिज्ञों की भी उपलब्धता बनी रही जैसे - सुनिधि , दीर्घचारण , वज्जसार तथा चाणक्य चाणक्य ने तो अपने अर्थशास्त्र मे राज्य और राजा  से संबंधित नियमों का पूरा उल्लेख किया है । यहाँ तक की राज्य किस तरह का होना चाहिए और उसमे निर्माण मे किन किन तत्वों की भूमिका होनी चाहिए उसका पूरा वर्णन चाणक्य ने अपने सप्तान्ग सिद्धांत मे किया है।

लोहे के विशाल भंडार 


मगध के निकट लोहे के भंडारों की उपस्थिति के कारण मगध की भौगोलिक स्थिति लौह युग में उपयुक्त थी। मगध राज्य ने ही पहली बार अपने पड़ोसियों के विरुद्ध युद्ध में लोहे के हथियारों का प्रयोग किया। अच्छे तीर कमान और तलवारों के सामने बाकी महाजनपदों के तांबे और कांसे के बने हथियार टिक नहीं पाए।

मजबूत भौगोलिक स्थिति - 

प्राचीन पाटलीपुत्र  
मगध की राजधानियाँ,राजगीर (गिरीब्रज) एवं पाटलिपुत्र, महत्त्वपूर्ण सामरिक स्थानों पर थी। राजगीर पहाड़ियों से घिरे होने के कारण दुर्भेद्य था, वहीं पाटलिपुत्र की केंद्रीय स्थिति के कारण यहाँ से सभी दिशाओं में संपर्क किया जा सकता है। नदी जलमार्गों पर अधिपत्य करके यातायात आंतरिक व्यापार सैन्य संचालन में उपयोग किया गया।

ऊपजाऊ भूमि -गंगा के उपजाऊ मैदानों में होने के कारण यहाँ के किसानों के पास भरण-पोषण के पश्चात् भी अतिरिक्त अनाज बचता था। शासक कर के रूप में इस अनाज को एकत्र करते थे।धान की रोपनी पद्धति से पैदावार  प्रारंभ हुई।यहां से कृषि पंचांग मिला है। गंगा नदी

लोहे का बहुत बड़ी मात्रा में कृषि में प्रयोग किया गया। अधिक कृषि उत्पादन से राज्य के आय में वृद्धि हुई तथा प्रशासनिक व्यवस्था मजबूत हुई। भोजन आपूर्ति में सुनिश्चितता आयी , जिससे विशेषज्ञों के वर्ग का विकास हुआ तथा विविध प्रकार के भाषाओं का विकास हुआ। बढ़ती हुई जनसंख्या से सैन्य आधार को मजबूती मिली।  यहां पर उपस्थित लोहे और तांबे की खाने अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रखती हैं क्योंकि इससे मगध में हथियार बनाने के मामले में  स्वनिर्भरता आई। मगध राज्य का बहुत बड़ा हिस्सा जंगल था जिससे यहां पर हाथी तथा लकड़ियों की उपलब्धता थी।


मुद्रा का प्रचलन- आहत सिक्कों का प्रचलन हुआ जिससे व्यापारिक श्रेणी का निर्माण हुआ। कृषि मे वृद्धि के कारण व्यापार मे वृद्धि हुई और इस चीज ने एक नई आर्थिक प्रणाली अर्थात मुद्रा प्रणाली का विकास किया और हमे महाजनपद काल के आहत सिक्के मिलते हैं, जो की मगध साम्राज्य की विशालता का द्योतक है।



 

बड़े नगरों का उदय -नगरों के उत्थान तथा सिक्कों के प्रचलन के कारण मगध के व्यापार-वाणिज्य में वृद्धि हुई, जिससे शासक अब वाणिज्य वस्तुओं पर चुंगी लगाकर धन एकत्र कर सकते थे। पातलीपुत्र और राजगीर ऐसे ही बड़े और भव्य नगर थे जो की मगध की राजधानी बन के उभरे और शक्ति और समृद्धि का केंद्र बने।

 


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