मंगलवार, 13 अक्टूबर 2020

नवपाषाण काल

नवपाषाण काल (4000 .पू. से 1800 .पू. )



 

1. नवपाषाण कालीन उपकरण और औजारों की खोज 1860 में उत्तर प्रदेश में ली मेसुरियर द्वारा की गई थी|

2. “नवपाषाण” शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सर जॉन ल्यूबक” ने अपनी पुस्तक "प्रागैतिहासिक थीम्स" में की थी जो पहली बार 1865 में प्रकाशित हुआ था|

3. वी गार्डन चाइल्ड पहले व्यक्ति थे जिन्होंने नवपाषाणकालीन ताम्रपाषाण युग को आत्मनिर्भर खाद्य अर्थव्यवस्था के रूप में परिभाषित किया था|

4. नवपाषाण संस्कृति की प्रमुख विशेषता कृषि-कार्यों की शुरूआत, पशुपालन, पत्थरों के चिकने औजार और मिट्टी के बर्तनों का निर्माण है| कृषि का प्राचीनतम साक्ष्य मेहरगढ (ब्लूचिस्तान, पाकिस्तान) से प्राप्त हुए हैं

ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी पर सर्वप्रथम प्लेस्टोसिन युग में मानव का उद्भव ऑस्ट्रेलोपिथिक्स या साउदर्न पीपल (सर्वप्रथम अफ्रीका में) के रूप में हुआ था| महाराष्ट्र के बोरी नामक स्थान से प्राप्त साक्ष्य से पता चलता है कि भारत में मनुष्य का उद्भव प्लेस्टोसिन युग के दौरान हुआ था

5. इस काल में स्थाई निवास के प्रमाण मिले हैं। गेहूँ तथा जौ भी इसी काल में मिले हैं तथा खजूर की एक किस्म भी प्राप्त हुई है। कृषि के लिए अपनाई गई सबसे प्राचीन फसल गेहूँ जौ हैं।



6.पहिए का आविष्कार नवपाषाण काल में हुआ।



सबसे पुराने पहिये के सबूत 3500 ईसा पूर्व के हैं, जो प्राचीन मेसोपोटामिया में पाए गए थे. इन पहियों को मिट्टी के बर्तन बनाने वाले इस्तेमाल करते थे. हर जगह पहिये को लेकर जो साक्ष्य मिले हैं, उनसे पता चलता है कि पहिया बहुत सी चीज़ों से अपेक्षाकृत नया आविष्कार है.





7.कृषि कर्म से अनाज के संग्रह, भोजन की पद्धति हेतु मृदभाण्डों का निर्माण प्रारंभ हुआ।

8.कृषि कार्य के लिए पत्थर के उपकरण अधिक धारदार सुघङ बनने लगे उन पर पोलिश भी होने लगी




9.अनाज के उत्पादन से जीवन में स्थायित्व की प्रवृत्ति आई तथा ग्राम संस्कृति की स्थापना हुई।



 आग की खोज 





आदिमानव आग की खोज करने से पहले मांस को कच्चा ही खाते थे ! लेकिन आदि मानव के जीवन में कुछ घटना ऐसी हुई जिसे पत्थरों का आपस में टकराना ,जिससे चिंगारी का निकलना और इसी प्रकार आदिमानव ने आग को खोज निकाला ! सर्वप्रथम आग की खोज आदिमानव द्वारा पत्थरों को आपस में रगड़ कर हुई थी

नवपाषाण काल के स्थलभारत में नवपाषाणयुगीन सभ्यता के तीन प्रमुख क्षेत्र रहे हैं-




·        ब्लुचिस्तान मेहरगढ, सरायखोल

·        कश्मीर – बुर्जहोम, गुफ्कराल

·        उत्तरप्रदेश कोल्डीहवा, चौपातीमांडो, महागरा

·        बिहार चिरांग

·        बंगाल ताराडीह, खेराडीह, पाण्डु,मेघालय, असम, गारोपहाङियाँ

·        दक्षिणी भारत से –  कर्वाटक, मास्की, ब्रह्मगिरी, टेक्कलकोट्टा, संगेनकल्लू

·        आंध्रप्रदेश उत्तनूर

·        तमिलनाडु पोचमपल्ली

·        दक्षिणी भारतीय नवपाषाण स्थलों की प्रमुख विशेषता है, गोशाला की प्राप्ति एवं राख के ढेर की प्राप्ति।

·        उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में नवपाषाणयुगीन सभ्यता की प्रमुख विशेषता गेहूं और जौ का उत्पादन, कच्ची ईंटों के आयताकार मकान, बङे पैमाने पर पशुपालन आदि हैं। इसी क्षेत्र में 5000.पू. के बाद से मृदभांडों के अवशेष प्राप्त हुए हैं जो भारत में उपलब्ध  प्राचीनतम हैं।




·        बुर्जहोम – यहाँ से गर्त्त-आवास, विविध प्रकार के मृदभांड, पत्थर के साथ-साथ हड्डियों के औजार, गेहूं जौ के अलावा मसूर,अरहर, का उत्पादन, औजारों पर पॉलिश आदि के अवशेष मिले हैं। यहां से मनुष्य की कब्र में कुत्ते को भी साथ दफनाए जाने के साक्ष्य मिले हैं।




·        गुफ्कराल  यहाँ से भी गर्त्त आवास के साक्ष्य मिले हैं।



·        विन्ध्य क्षेत्र में बेलन घाटी क्षेत्र औऱ मिर्जापुर में भी नवपाषाण युग के अनेक स्थल मिले हैं।

·        कोल्डीहवा(.प्र.)- यहाँ से चावल के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं।

·        कोल्डीहवा(.प्र.)- यहां से मृदभांडो के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं और झोंपङियों के भी साक्ष्य मिले हैं।

·        चिरांद (बिहार) से सर्वाधिक मात्रा में हड्डी के उपकरण मिले हैं। यहां से टोराकोटा की मानव मूर्तियां प्राप्त हुई हैं।

·        असम मेघालय में नवपाषाणयुगीन महत्तवपूर्ण स्थल प्राप्त हुए हैं। इस क्षेत्र से प्राप्त मृदभांड विशिष्ट हैं जिन पर रस्सी से चिह्नित किया गया है और मोती चिपकाएं गए हैं।

·        दक्कन में चंदेली, नेवासा, दैमाबाद, ऐरण, जोखा आदि नवपाषाण स्थल रहे थे यहां के मानव धातुयुग में प्रवेश कर गए थे।

·        दक्षिण भारत में नागार्जुन, मास्की, पिक्कीहल, ब्रह्मगिरि, हल्लुर आदि प्रमुख बस्तियां थी।

·        जहाँ उत्तर भारत में गेहूँ , जौ एवं चावल के साक्ष्य मिले हैं वहीं दक्षिण भारत में रागी के साक्ष्य मिले हैं

नवपाषाण युग के लोगों के द्वारा व्यवहार में लाए गए कुल्हाड़ियों के आधार पर बस्तियों के तीन भाग निर्धारित किए गए-

1.      उत्तर पश्चिमी,

2.      उत्तर पूर्वी

3.      दक्षिणी।

उत्तर पश्चिमी- कश्मीर एक महत्त्वपूर्ण नवपाषाण स्थल है। कश्मीर में बुर्जहोम एवं गुफाक्कराल ये दो महत्त्वपूर्ण स्थल हैं। कश्मीर के स्थलों की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ निम्न हैं- गर्त्तनिवास, मृदभांडों की विविधता, पत्थर हड्डियों के भिन्न औजारों का प्रयोग तथा सूक्ष्म पाषाण (माइक्रोलिथ) उपकरणों का अभाव।

बुर्जहोम में भूमि के नीचे निवास का साक्ष्य मिलता है। यहाँ के लोग शिकार करते मछली पकड़ते थे परन्तु संभवतः यहाँ के लोग कृषि से भी परिचित थे। यहाँ से प्राप्त सबसे महत्त्वपूर्ण साक्ष्य हैपालतू कुत्ते का मालिक के शव के साथ दफनाया जाना उत्तर पश्चिम में मेहरगढ़ भी एक महत्त्वपूर्ण नवपाषाण कालिक स्थल है। यहाँ गेहूँ की तीन जौ की दो किस्में प्राप्त हुयी हैं। यहाँ के लोग संभवत: खजूर का भी उत्पादन करते थे। यहाँ के लोग कच्ची ईंटों के आयताकार मकान में रहते थे।

उत्तर पश्चिम में स्वात घाटी में सरायखोला एक महत्त्वपूर्ण स्थल था। बेलनघाटी में कुछ महत्त्वपूर्ण नवपाषाण कालीन स्थल निम्नलिखित हैं- कोल्डीहवा, चौपानीमांडो और महागरा। कोल्डीहवा से वन्य एवं धान की इस प्रजाति का नाम ऐरिजा सेरिवा था। कृषिजन्य दोनों प्रकार के चावल के साक्ष्य मिलते हैं। इनकी कालावधि 6000 .पू. से 5000 .पू. निर्धारित की गयी है। उसी तरह चौपानीमांडो से मृदभांड के प्रयोग के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं। मध्य गंगा घाटी में भी कुछ महत्त्वपूर्ण नवपाषाण स्थल प्राप्त हुए हैं, जो निम्न हैं- चिरांद (छपरा), चैचर, सेनुआर, तारादीह आदि। इसी तरह पूर्वी भारत में असम, मेघालय गारो की पहाड़ी में कुछ नवपाषाण कालीन स्थल मिले हैं।



दक्षिण भारत में कुछ नवपाषाण स्थल निम्न हैं, कर्नाटक में मस्की, ब्रह्मगिरि, हल्लूर, कोडक्कल, पिकलीहल, संगेनकलन, तेकलकोट्टा तथा तमिलनाडु में पय्यमपल्ली और आध्रप्रदेश में उत्नूर।

मेहरगढ़- वर्तमान पाकिस्तान में स्थित इस स्थल के उत्खनन से तीन सांस्कृतिक कारण इस स्थल को नवपाषाण कालीन मेहरगढ़ कहा गया। यह भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीनतम कृषक बस्ती थी और यहाँ 6000 .पू. के लगभग कृषि का साक्ष्य प्राप्त हुआ है। यहाँ से गेहूँ, जौ और मसूर की खेती का साक्ष्य मिला है।



चौपानी मांडो- बेलनघाटी क्षेत्र में स्थित कोल्डीहवा से नवपाषाणिक और मांडो से प्राचीनतम मृदभांड 7000 .पू. के लगभग प्राप्त हुआ है। यह नवपाषाण काल की तिथि को कुछ पीछे ले जाता है।

महगढ़ा- बेलनघाटी क्षेत्र में स्थित इस स्थल से पशुपालन का स्पष्ट प्रमाण मिलता है। यहाँ से पशुओं का विशाल बाड़ा मिला है जिसमें तीन बहुत बड़े दरवाजे हैं तथा 28 स्तंभगर्त्त। इसमें बीस से अधिक पशु बाँधे जाते रहे होंगे।

चिराँदबिहार के छपरा जिला में स्थित यह स्थल नवपाषाण काल और ताम्रपाषाणिक संस्कृति के तीसरे चरण से संबद्ध है। इसका काल-निर्धारण (2500-1400 .पू.) किया गया है। कालखण्ड और अस्थि-उपकरण की दृष्टि से इसका बुर्जहोम से साम्य है। यहाँ से पाषाण और पशु-श्रृंगों से निर्मित उपकरण प्राप्त हुए हैं। यह उत्तम कृषक बस्ती थी जहाँ से गेहूँ, जौ और धान की खेती के प्रमाण मिले हैं।



डेओजली हेडिंग- यह स्थल मेघालय में स्थित है। यहाँ से तथा मेघालय के अन्य स्थलों-सरूतरू एंव मइक डोला और असम से ढ़लवे जगह पर मकान बनाने के प्रयास किये जाने का संकेत मिलता है। यहाँ से झूम की खेती का प्राचीनतम प्रमाण मिला है। यहीं ढलवे जगह पर खेती प्रारंभ हुई थी।

ब्रझगिरि- इस जगह पर उत्खनन 1947 में मार्टिमर ह्वीलर (Martimer wheeler) के नेतृत्व में प्रारंभ हुआ। यह स्थल तीन सांस्कृतिक चरणों से सम्बद्ध है- नवपाषाण काल, मध्य पाषाण काल और आंध्र-सातवाहन चरण। यहाँ से 1500 .पू. के लगभग रागी और कुल्थी की खेती का प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुआ है। यहाँ से कलश शवाधान के साथ-साथ इस बात का साक्ष्य भी प्राप्त हुआ है कि छोटे बच्चे को आवासीय स्थल में या उसके करीब दफनाया जाता था।

उत्नूर और पय्यमपल्ली- उत्नूर आंध्र प्रदेश में स्थित है और पय्यमपल्ली तमिलनाडु में। दोनों जगह से कपड़े के निर्माण और कपड़े के उपयोग का प्रथम साक्ष्य प्राप्त हुआ है। यहाँ से हड्डी का बना हुआ सूआ मिला है जो वस्त्र निर्माण में उपयोगी था।

नागार्जुनकोंडा- आंध्र प्रदेश में स्थित नागार्जुनकोंडा बुर्जहोम और गुफक्कराल के अतिरिक्त गर्त्तनिवास का साक्ष्य एकमात्र स्थल है। यह स्थल भी ब्रह्मगिरि (1500 .पू.) का समकालीन था और इसी समय में यहाँ रागी और कुल्थी की खेती की जाती थी। ब्रह्मगिरि की तरह यहाँ भी छोटे बच्चे को आवासीय स्थल या उसके करीब दफनाने का साक्ष्य मिला है। यहाँ से मालवाहक पशुओं यथा घोड़ा, गधा, खच्चर का प्रमाण भी मिला है।

दक्षिण भारत में प्रयुक्त होने वाली पहली फसल रागी थी। नवपाषाण काल में कृषि यहाँ गौण ही थी। दक्षिण भारत में नवपाषाण 2000 .पू. से 1000 .पू. तक जारी रही। नवपाषाण काल में कृषि उपकरण में खन्ती एवं कुदाल का प्रयोग होता था। ताम्रपाषाण काल में कृषि कार्य पूर्णत: स्थापित हो गया। ताम्रपाषाण एवं सिन्धु घाटी सभ्यता दोनों में पत्थर के उपकरणों का ही अधिक प्रयोग हुआ। ताम्रपाषाण काल तकनीकी दृष्टि से काँस्ययुग से प्राचीन है परन्तु कुछ ताम्रपाषाणकालिक स्थल काँस्ययुग से प्राचीन थे, कुछ उसके समकालीन थे एवं कुछ परवर्ती थे।

विश्व का पहला गांव




Çatal höyük- 10.000 ईसा पूर्व के बाद मानव गांवों में बस गए। सबसे अच्छा संरक्षित में से एक अनातोलिया (अब आधुनिक तुर्की) में Çatal höyük में नियोलिथिक गांव है। गाँव का आंशिक पुनर्निर्माण इमारतों का एक विचार देता है। Çatal höyük गांव नियर ईस्ट में सबसे बड़ा नियोलिथिक स्थल है जो 13 हेक्टेयर को कवर करता है। इसकी स्थापना c.7000 ईसा पूर्व में हुई थी और निपटान तेजी से बढ़ा और एक समृद्ध और सुव्यवस्थित समुदाय बन गया। चटल हुयुक के निवासी मुख्य रूप से गेहूँ, जौ और मटर उगाते थे। उन्होंने सेब, हैकबेरी, बादाम और एकोर्न द्वारा अपने आहार को पूरक किया, जो स्थानीय रूप से एकत्र किए गए थे। मुख्य मांस स्रोत मवेशी थे, हालांकि ऐसा लगता है कि जंगली जानवर भी महत्वपूर्ण थे, जो कि लाल हिरण, सूअर और ग्रामीणों के शिकार को चित्रित करने वाले दीवार चित्रों से देखते हैं। अधिकांश कच्चे माल का आयात करना पड़ता था और गाँव एक व्यापारिक परिसर का केंद्र बन गया था, जिसमें वस्तुओं की एक विस्तृत श्रृंखला - लकड़ी, ओब्सीडियन, चकमक पत्थर, तांबा, गोले थे। कारीगरों ने मुख्य रूप से तीरंदाजी, चकमक पत्थर और ओब्सीडियन, पत्थर के टुकड़े, पके हुए मिट्टी और नक्काशीदार पत्थर की मूर्तियाँ, वस्त्र, लकड़ी के बर्तन और मिट्टी के बर्तनों का उत्पादन किया। Çatal höyük के घरों को बारीकी से एक साथ पैक किया गया था, बिना हस्तक्षेप किए सड़कों पर। अंदरूनी तक पहुंच फ्लैट की छतों से लकड़ी की सीढ़ी द्वारा की गई थी। मकान पागल-ईंट से बने थे और इनमें कई कमरे थे जो सबसे बड़ा था। 4x5m मुख्य कमरे में बैठने और सोने के लिए बेंच और प्लेटफार्म थे। जीवन प्रत्याशा कम थी; पुरुषों के लिए औसतन 34 वर्ष, महिलाओं के लिए 29 Çatal höyük की कई विशेषताएं गूंज रही हैं। हालाँकि, हालाँकि हम इस नवपाषाण गाँव के राजनीतिक और सामाजिक विकास के बारे में ज़्यादा नहीं जानते हैं, यह प्राचीन निकट पूर्व में कृषि को अपनाने की पेशकश की गई विशाल नई क्षमता का एक ज्वलंत चित्रण के रूप में कार्य करता है। 

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