पाषाण कालीन चित्रकला
उद्भव- गुफाओं से मिले अवशेषों और साहित्यिक स्रोतों के आधार पर यह स्पष्ट है कि भारत में एक कला के रूप में ‘चित्रकला’ बहुत प्राचीन काल से प्रचलित रही है।भारत में चित्रकला और कला का इतिहास मध्यप्रदेश की भीमबेटका गुफाओं की प्रागैतिहासिक काल की चट्टानों पर बने पशुओं के रेखांकन और चित्रांकन के नमूनों से प्रारंभ होता है। महाराष्ट्र के नरसिंहगढ़की गुफाओं के चित्रों में चितकबरे हरिणों की खालों को सूखता हुआ दिखाया गया है। कला की उत्पत्ति कब और कैसे हुई इसके विषय में निश्चित रूप से हमारे पास कोई साक्ष्य नहीं है पर हम निश्चित तौर पर यह कह सकते है कि मानव जीवन के साथ ही कलाओं का जन्म हुआ होगा। प्रागैतिहासिक मानव ने सारी खोजे अचानक से हुई उदाहरण के लिये आग की खोज दो पत्थरों को रगड़ते हुए हुई । ऐसे ही कला का ज्ञान हुआ होगा।
मुख्य खोजकर्ताओं का योगदान
1880 ईसवी मैं कार्लाइल ने विंध्याचल पर्वत श्रेणी में मिर्जापुर के निकट कैमूर पहाड़ी से कुछ गुफा चित्रों की खोज की लेकिन वह इनकी सूचना मात्र दे सके, इसके बाद 1883 ईसवी में काकबर्न ने इन चित्रों का सचित्र विवरण एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल में प्रकाशित कराया जिसमें घोड़ा बंगर नामक स्थान से गैंडे के आखेट का दृश्य की रेखा अनुकृति प्रकाशित की गई | 1881 में कॉर्नबर्न ने मिर्ज़ापुर क्षेत्र में केन नदी की घाटी में जीवाश्म गैंडों की हड्डियों के साथ-साथ रूप गांव के पास एक आश्रय में तीन पुरुषों द्वारा शिकार किए गए गैंडों की एक पेंटिंग पाई थी। 1881 में जे कॉकबर्न ने अपनी सभी खोजों का एक खाता प्रकाशित किया (जे कॉकबर्न 1891: 91)। केरल के कोझीकोड जिले के एडाकल की गुफा में F Fawcett ने रॉक उत्कीर्णन (Fawcett F 1901: 402-21) की शुरुआती खोज की। कुछ साल बाद ए सिल्बेरड ने बांदा जिले में शैल चित्रों का एक चित्रमय विवरण प्रकाशित किया (सिलबर्रेड 1970: 567-70)। सी डब्लू एंडरसन ने रायगढ़ जिले के सिंघानपुर में (एंडरसन सीडब्ल्यू 1981: 298-306) में चित्रित आश्रय की खोज की। बाद में एफ आर अल्चिन 1963: 161), ए. सुंदर (1974: 21-32) और के. पद्य्या 1968: 294-98) द्वारा उसी क्षेत्र के साथ-साथ कर्नाटक के गुलबर्गा जिले से भी पाए गए। मनोरंजन घोष ने 1932 में प्रकाश के लिए मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के पास चित्रित रॉक शेल्टरों के आदमगढ़ समूह की खोज की। 1933 में के पी जयसवाल द्वारा ओडिशा के संबलपुर जिले के विक्रमखोल में एक रॉक शेल्टर में रॉक उत्कीर्णन का पहला उदाहरण खोजा गया था। (जयसवाल केपी 1933: 58-60)। 'फादर ऑफ इंडियन रॉक आर्ट' डॉ. जीन क्लॉट्स ने मध्य भारत में मुख्य रूप से कई सौ पेंटेड शेल्टर खोजे थे, और पूरे देश के रॉक पेंटिंग्स के व्यापक सर्वेक्षण का प्रयास किया ।ब्राइट अल्चिन ने 1958 में प्रागैतिहासिक कला का एक अध्ययन प्रकाशित किया है। 1964 में आर के वर्मा, जे गुप्ता 1967, एस के पांडे 1961 और जे जैकबसन 1970 ने भी भारतीय रॉक कला की खोज में योगदान दिया है। डीएच गॉर्डन ने 1932 में महादेव हिल्स में पचमढ़ी के शैल चित्रों का अध्ययन किया। उन्होंने भारतीय और विदेशी पत्रिकाओं में कई पत्र लिखे और अपनी पुस्तक में भारतीय रॉक कला पर अपने विचारों को संक्षेप में प्रस्तुत किया है। (गॉर्डन 1958: 98-17)। हाल के वर्षों में यशोधर मठपाल और एरविन न्यूमायर ने भोपाल बरेली रोड पर बाड़ी के पास पटनी की राहारी पहाड़ी पर दस चित्रित आश्रयों का एक नया समूह खोजा है (मठपाल 1976 23: 28)।
प्रमुख तथ्य
- भारतीय प्रागैतिहासिक चित्रों की
खोज का श्रेय कर्क बार्न एवं कार्लाइल को दिया जाता है
- प्रागैतिहासिक कालीन मानव स्मृतियों को
रेखाओं के माध्यम से पत्थरों पर उकेरता था चित्रण का उद्देश्य अपने विचारों को व्यक्त करना था
- प्रागैतिहासिक कालीन मानव ने
चित्रों में रंग भरने के लिए रंगों को चरबी में मिलाकर किसी रेशेदार लकड़ी या नरकुल की कुची बनाकर चित्रों में भरा है रंगों को मिलाने के लिए जानवरों की हड्डियों का प्रयोग किया जाता था इस काल के मनुष्य ने खनिज रंगों का प्रयोग किया है इनमें लाल पीला काला प्रमुख हैं चित्रों के निर्माण के लिए सर्वप्रथम एक नुकीले पत्थर से आउटलाइन कर ली जाती थी तत्पश्चात उनमें रंग भरे जाते थेI खनिज रंगों में गेरू रामरज हिरोजी चूना पत्थर खड़िया रसायनिक रंगों में कोयला वनस्पतिक रंगों में हरा रंग आता है
- प्रायः गुफाओं में चित्रों के
अनेक स्तर मिलते हैं चित्रों के निर्माण में सरल रूपों तथा ज्यामिति आकारों का प्रयोग हुआ हैI ज्यामितीय या प्रतीकात्मक चित्रों का विकास नवपाषाण युग काल के अंतिम समय में हुआ
- प्रागैतिहासिक मानव द्वारा जादू टोने में विश्वास के
साक्ष्य प्राप्त होते हैं जैसे स्वास्तिक चतुष्कोण षटकोण
- विश्व स्तर पर
सर्वप्रथम प्रागैतिहासिक चित्रों की खोज 1879 ईसवी में अल्तामिरा में तथा 1880 ईस्वी में भारत में मिर्जापुर नामक स्थान पर हुआ
- मध्य प्रदेश के
कई गुफाओं मे क्षेपाकन पद्धति से चित्रण हुआ हैI दक्षिण भारतीय गुफा चित्रों की तुलना स्पेन की प्रागैतिहासिक गुफा चित्रों से किया गया है
प्रमुख केंद्र
भीमबेटका गुफ़ाएँ-
ये गुफ़ाएँ भोपाल से 46 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण में मौजूद है। गुफ़ाएँ चारों तरफ़ से विंध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुईं हैं. ये गुफ़ाएँ मध्य भारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विन्ध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर हैंI इसके दक्षिण में सतपुड़ा की पहाड़ियाँ आरम्भ हो जाती हैंIइनकी खोज वर्ष 1957-1958 में 'डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर' द्वारा की गई थीI भीमबेटका गुफ़ाओं की विशेषता यह है कि यहाँ कि चट्टानों पर हज़ारों वर्ष पूर्व बनी चित्रकारी आज भी मौजूद है और भीमबेटका गुफ़ाओं में क़रीब 500 गुफ़ाएँ हैंI भीमबेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त 1990 में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित कियाI इसके बाद जुलाई 2003 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित कियाIभीमबेटका गुफ़ाओं में प्राकृतिक लाल और सफ़ेद रंगों से वन्यप्राणियों के शिकार दृश्यों के अलावा घोड़े, हाथी, बाघ आदि के चित्र उकेरे गए हैंI इन चित्र में से यह दर्शाए गए चित्र मुख्यत है; नृत्य, संगीत बजाने, शिकार करने, घोड़ों और हाथियों की सवारी, शरीर पर आभूषणों को सजाने और शहद जमा करने के बारे में हैं। घरेलू दृश्यों में भी एक आकस्मिक विषय वस्तु बनती है। शेर, सिंह, जंगली सुअर, हाथियों, कुत्तों और घडियालों जैसे जानवरों को भी इन तस्वीरों में चित्रित किया गया है। इन आवासों की दीवारें धार्मिक संकेतों से सजी हुई है, जो पूर्व ऐतिहासिक कलाकारों के बीच लोकप्रिय थे। सेंड स्टोन के बड़े खण्डों के अंदर अपेक्षाकृत घने जंगलों के ऊपर प्राकृतिक पहाड़ी के अंदर पाँच समूह हैं I
मिर्जापुर-
सर्वप्रथम प्रागैतिहासिक चित्रों की खोज उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर नामक स्थान पर हुई.
इसकी खोज 1880 ईस्वी में कार्लाइल ने की यह विंध्याचल पर्वत श्रेणी की कैमूर पहाड़ी पर सोन नदी के किनारे पर 100 से अधिक चित्र शिलाश्रय प्राप्त हुए हैं I जनपद मुख्यालय मिर्ज़ापुर से लगभग 11-12 किलोमीटर दूर टांडा जलप्रपात से लगभग एक किलोमीटर पहले “सीता कोहबर” नामक पहाड़ी पर एक कन्दरा में प्राचीन शैलचित्रों के अवशेष प्रकाश में आये हैं।लगभग पांच मीटर लम्बी गुफा, जिसकी छत 1.80 मीटर ऊँची तथा तीन मीटर चौड़ी है, में अनेक चित्र बने हैं। चित्रों का मुख्य विषय आखेट के साथ-साथ घरेलू जनजीवन है जिस से यह प्रतीत होता है कि यह चित्र पाषाण काल के अंतिम चरण तक बनाए जाते रहे होंगे प्रमुख गुफाओं में कोहबर,विजयगढ़,भल्डरिया,लिखूनिया,कंडादेव बागापथरी ,घोड़ा मंगर आदि मिली है Iइनमें से घोड़ा मंगर से गैंडे के आखेट का दृश्य महडरिया से ऊंट के आखेट का दृश्य भल्डरिया से सूअर के आखेट का दृश्य प्रसिद्ध है Iयहाँ पर अधिकांश चित्र गेरू रंग से बने हैI विशालकाय मानवाकृति, मृग समूह को घेर कर शिकार करते भालाधारी घुड़सवार शिकारी, हाथी, वृषभ, बिच्छू तथा अन्य पशुपक्षियों के चित्र गहरे तथा हल्के लाल रंग से बनाये गए हैं, इनके अंकन में पूर्णतया: खनिज रंगों (हेमेटाईट को घिस कर) का प्रयोग किया गया हैIइस गुफा में बने चित्रों के गहन विश्लेषण से प्रतीत होता है कि इनका अंकन तीन चरणों में किया गया हैIप्रथम चरण में बने चित्र मुख्यतया: आखेट से सम्बन्धित है और गहरे लाल रंग से बनाये गए हैं, बाद में बने चित्र हल्के लाल रंग के तथा आकार में बड़े व शरीर रचना की दृष्टि से विकसित अवस्था के प्रतीत होते हैं साथ ही उन्हें प्राचीन चित्रों के उपर अध्यारोपित किया गया हैयहाँ उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र (मिर्ज़ापुर व सोनभद्र) में अब तक लगभग 250 से अधिक शैलचित्र युक्त शैलाश्रय प्रकाश में आ चुके हैं, जिनकी प्राचीनता ई० पू० 6000 से पंद्रहवी सदी ईस्वी मानी जाती हैIमिर्ज़ापुर के सीता कोहबर से प्रकाश में आये शैलचित्र बनावट की दृष्टि से 1500 से 800 वर्ष प्राचीन प्रतीत होते हैंIइन क्षेत्रों में शैलचित्रों की खोज सर्वप्रथम 1880 ई० में जे० काकबर्न व ए० कार्लाइल ने ने किया तदोपरांत लखनऊ संग्रहालय के श्री काशी नारायण दीक्षित, श्री मनोरंजन घोष, श्री असित हालदार, मि० वद्रिक, मि० गार्डन, प्रोफ़० जी० आर० शर्मा, डॉ० आर० के० वर्मा, प्रो० पी०सी० पन्त, श्री हेमराज, डॉ० जगदीश गुप्ता, डॉ० राकेश तिवारी तथा श्री अर्जुनदास केसरी के अथक प्रयासों से अनेक नवीन शैल चित्र समय-समय पर प्रकाश में आते रहे हैं।
पंचमढ़ी-
1932 में जी आर हंटर ने सर्वप्रथम गुफाओं को देखा और ये गुफाएं महादेव पर्वत माला में स्थित है जो पांडवों का निवास स्थान मानी जाती है इन्हीं के नाम पर इन्हें पंचमढ़ी नाम से जाना जाता है महादेव पर्वत के चारों ओर इमली खोह में सांभर, बैल, महिष का चित्र, मांडा देव की गुफा में शेर का आखेट का दृश्य, बाजार केव में विशालकाय बकरी का दृश्य, जम्मू दीप से शाही के आखेट का दृश्य प्राप्त हुआ है पंचमढ़ी में चित्रों की तीन श्रेणियां मिलती हैं इन चित्रों के अतिरिक्त अंतिम स्तर के चित्रों में सामाजिक जीवन, नृत्य-संगीत आदि विषय से संबंधित चित्रण किया गया है|
मंदसौर (सांकेतिक चित्र) -मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में मोरी नामक स्थान पर लगभग 30 गुफाएं प्राप्त हुई हैं जिनमें प्रतीकात्मक चित्रण किया गया है इन चित्रों में स्वास्तिक,सूर्य,चक्र,अनंत,कमल दल,पीपल की पत्तियों का प्रतिकात्मक चित्रण एवं देहाती-बास की गाड़ी चित्रित है
होशंगाबाद (आदमगढ़)-
पंचमढ़ी से 45 मील दूर नर्मदा नदी के तट पर कुछ गुफाओं की खोज मनोरंजन घोष ने 1922 ईस्वी में की I यहां आखेट के दृश्यों के अतिरिक्त जिराफ समूह, हाथी, विशालकाय महिष तथा जंगली मोर आदि के चित्र मिले हैं I साथ ही आरोही अश्वारोही सैनिकों के चित्र स्टैंसिल पद्धति में अंकित किए गए हैं यहां से छलांग लगाता हुआ बारहसिंघा का प्रसिद्ध चित्र प्राप्त हुआ है
बांदा-
बांदा में प्रागैतिहासिक चित्रों की खोज 1907 में सिल्वर राट ने कीI मानिकपुर के निकट प्राप्त एक शिलाश्रय से अश्वारोहियों का चित्र प्राप्त हुआ है यहां से प्राप्त पहिया रहित छकड़ा गाड़ी का चित्र विशेष प्रसिद्ध हैI यहाँ हमें एक 40,000 साल पुरानी पेंटिंग भी मिली है
बिहार- इस प्रदेश में चक्रधरपुर शाहाबाद आदि स्थानों से लेटे हुए शिकारी नृत्य करती हुई आकृतियां एवं प्रतिकात्मक चित्र प्राप्त हुए हैं
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